कर्Ÿाव्य परायणता में से हो हªास भय रहल अछि । लोक "ाॉर्टकट सं कामयाबी हासिल करय चाहैत छथि । बेटीक प्रति सकारात्मक भाव कमजोर परि रहल अछि । कि गार्गी वैदेही, भारतीय, भामतीक /ारती पर चिंतनीय परस्थितिनहि अछि ? अ/िासंख्यक, बाट निर्/ाारीत करब में फंसल, जीवनक अमुल्य समय नश्ट कऽ दैत छथि । यदि जीवनक घाट निर्/ाारित कऽ लेल जाय तं बाट खोजब आसान भऽ जाइछ । 'दू घाटक बाट' मिथिला एवं मैथिलक उफापोह पर एक छोट छीन प्रयास अछि । उम्मीद अछि पाठक गण प"ांद करताह ।